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50+ संत कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे अर्थ के साथ हिन्दी मे

कबीर अमृतवाणी – Read Best Sant Kabir Das Dohe In Hindi With Meaning. Find Great Collection Of Top Hindi Doha By Saint Kabir, Kabir Ki Amritvani, Kabir Ke Dohe Arth Ke Sath And Kabir Ki Sakhi On Life In Hindi.
Kabir Ke Dohe

Top Kabir Ke Dohe In Hindi With Meaning

Contents

पंडित यदि पढि गुनि मुये,
गुरु बिना मिलै न ज्ञान।
ज्ञान बिना नहिं मुक्ति है,
सत्त शब्द परमान।।

दोहे का अर्थ – इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि बड़े-बड़े विद्धान शास्त्रों को पढ़-लिखकर ज्ञानी होने का दम भरते हैं, लेकिन गुरु के बिना उन्हें ज्ञान नही मिलता। ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं मिलती।
Sant Kabir Ke Dohe

कबीर के दोहे
सब धरती कागज करूँ,
लिखनी सब बनराय।
सात समुद्र की मसि करूँ,
गुरु गुण लिखा न जाय।।

दोहे का अर्थ-
सब पृथ्वी को कागज, सब जंगल को कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते।
Kabir Ke Dohe With Meaning

कबीरदास के दोहे
ज्ञान समागम प्रेम सुख,
दया भक्ति विश्वास।
गुरु सेवा ते पाइए,
सद् गुरु चरण निवास।।

दोहे का अर्थ-
इस दोहे मे कबीरदास जी ने कहा है कि ज्ञान, सन्त- समागम, सबके प्रति प्रेम, निर्वासनिक सुख, दया, भक्ति सत्य-स्वरुप और सद् गुरु की शरण में निवास – ये सब गुरु की सेवा से ही मिलते हैं।
Kabir Ke Pad Hindi Me

दोहे और उनके अर्थ
गुरु मूरति आगे खड़ी,
दुतिया भेद कुछ नाहिं।
उन्हीं कूं परनाम करि,
सकल तिमिर मिटि जाहिं।।

दोहे का अर्थ-
इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि अगर गुरु की मूर्ति आगे खड़ी है, उसमें दूसरा भेद कुछ मत मानो। उन्हीं की सेवा बंदगी करो, फिर सब अंधकार मिट जाएगा।
Kabir Ke Amrit Vani

कबीर के दोहे और उनके अर्थ
गुरु मूरति गति चन्द्रमा,
सेवक नैन चकोर।
आठ पहर निरखत रहे,
गुरु मूरति की ओर।।

दोहे का अर्थ-
इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु की मूर्ति चन्द्रमा के समान है और सेवक के नेत्र चकोर के सामान हैं। अर्थात आठो पहर गुरु है – मूर्ति की ओर ही देखते रहो।

कबीर के दोहे अर्थ सहित

गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष।
गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।।

दोहे का अर्थ-
इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं – संसारिक प्राणियों। बिना गुरू के ज्ञान का मिलना असम्भव है। तब तक मनुष्य अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बन्धनों मे जकड़ा रहता है जब तक कि गुरू की कृपा प्राप्त नहीं होती। मोक्ष रूपी मार्ग दिखलाने वाले गुरू हैं। बिना गुरू के सत्य एवं असत्य का ज्ञान नहीं होता। उचित और अनुचित के भेद का ज्ञान नहीं होता फिर मोक्ष कैसे प्राप्त होगा? अतः गुरू की शरण में जाओ। गुरू ही सच्ची राह दिखाएंगे।

कबीर के दोहे इन हिंदी

गुरु को सिर राखिये,
चलिये आज्ञा माहिं।
कहैं कबीर ता दास को,
तीन लोकों भय नाहिं।।

दोहे का अर्थ-
इस दोहे में कबीरदास जी ने कहा है कि गुरु को अपना सिर मुकुट मानकर, उसकी आज्ञा मैं चलना चाहिए। जो लोग ऐसा करते हैं उनके लिए कवि कह रहे हैं कि ऐसे शिष्यों को अथवा सेवक को तीनों लोकों से कोई डर नही हैं। अर्थात वह हमेशा ही सही मार्ग पर चलेगा और अपनी जिंदगी में तरक्की हासिल करेगा।

हिंदी दोहे

गुरू गोविन्द दोऊ खङे का के लागु पाँव।
बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय।।

दोहे का अर्थ-
इस दोहे में संत कबीरदास जी कहते हैं कि गुरू और गोबिंद अर्थात भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को ?
कवि कहते हैं कि ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है क्योंकि गुरु ने ही भगवान तक जाने का रास्ता बताया है अर्थात गुरु की कृपा से ही गोविंद के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

कबीर के दोहे मीठी वाणी

‘हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर ॥’

दोहे का अर्थ-
इस दोहे के माध्यम से कवि कबीरदास जी ने कहा है कि भगवान के रूठने पर तो गुरू की शरण रक्षा कर सकती है लेकिन गुरू के रूठने पर कहीं भी शरण मिलना सम्भव नहीं है।
जिसे ब्राह्मणों ने आचार्य, बौद्धों ने कल्याणमित्र, जैनों ने तीर्थंकर और मुनि, नाथों तथा वैष्णव संतों और बौद्ध सिद्धों ने उपास्य सद्गुरु कहा है उस श्री गुरू से उपनिषद् की तीनों अग्नियाँ भी थर-थर काँपती हैं। त्रोलोक्यपति भी गुरू का गुणगान करते है। ऐसे गुरू के रूठने पर कहीं भी ठौर नहीं।

Kabir Ke Dohe In Hindi

गुरुब्रह्मा गुरुविर्ष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः।।

दोहे का अर्थ-
इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि गुरू ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है, गुरु ही भगवान शिव है। गुरु ही साक्षात परम ब्रहम है। ऐसे गुरु के चरणों में मैं प्रणाम करता हूँ।

Kabir Das Ke Dohe In Hindi

जो गुरु बसै बनारसी,
शीष समुन्दर तीर।
एक पलक बिखरे नहीं,
जो गुण होय शारीर।।

दोहे का अर्थ-
इस दोहे में महान संत कबीर दास जी ने कहा है कि अगर गुरु वाराणसी में निवास करें और शिष्य समुद्र के पास हो, लेकिन शिष्य के शरीर में गुरु का गुण होगा, जो कि गुरु को एक पल भी नहीं भूलेगा।

Kabir Ke Dohe With Meaning

गुरु समान दाता नहीं,
याचक शीष समान।
तीन लोक की सम्पदा,
सो गुरु दीन्ही दान।।

दोहे का अर्थ-
इस दोहे में कवि कबीरदास जी ने गुरु-शिष्य के अनमोल रिश्ते की व्याख्या करते हुए बताया है कि गुरु के समान कोई देने वाला नहीं है अर्थात दाता नहीं हैं और शिष्य के सामान कोई लेने वाला नहीं है यानि कि याचक नहीं। इस दोहे में कवि ने कहा है कि गुरु ने त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढ़कर ज्ञान दिया है।

Kabir Das Poems In Hindi

गुरु कुम्हार शिष कुंभ है,
गढ़ि – गढ़ि काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै,
बाहर बाहै चोट।।

दोहे का अर्थ-
इस दोहे में कवि कबीरदास जी गुरु-शिष्य की तुलना कुम्हार और घड़े से कर रह रहे हैं। इसमें कवि कह रहे हैं कि गुरु, एक कुम्हार की तरह है और शिष्य एक घड़े की तरह है, अर्थात जिस तरह से कुम्हार, घड़े में अंदर से हाथ का सहारा देकर और बाहर से चोट मारकर और गढ़ – गढ़ कर शिष्य की बुराई को निकलते हैं।
और घड़े को एक सुंदर आकार देते हैं उसी तरह गुरु भी अपने शिष्यों की बुराइयों को दूर करते हैं और उन्हें अच्छाई के रास्ते पर चलना सिखाते हैं।

About Kabir Das In Hindi

कुमति कीच चेला भरा,
गुरु ज्ञान जल होय।
जनम – जनम का मोरचा,
पल में डारे धोया।।

दोहे का अर्थ-
इस दोहे में महान संत कबीरदास जी कहते हैं कि कुबुद्धि रूपी कीचड़ से शिष्य भरा पड़ा है, जिसे धोने के लिए गुरु का ज्ञान जल है। वहीं गुरुदेव एक ही पल में जन्म – जन्मान्तरो की बुराई भी नष्ट करते जा रहे हैं।

Kabir Das Dohe In Hindi

गुरु पारस को अन्तरो,
जानत हैं सब सन्त।
वह लोहा कंचन करे,
ये करि लये महन्त।।

दोहे का अर्थ-
इस दोहे में संत कबीर दास जी ने गुरु और पारस पत्थर की तुलना करते हुए कहा है कि यह सब सन्त जानते हैं कि पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है, लेकिन गुरु वो होता अपने शिष्यों को महान बनाता है।

Dohe Of Kabir In Hindi

गुरु की आज्ञा आवै,
गुरु की आज्ञा जाय।
कहैं कबीर सो संत हैं,
आवागमन नशाय।।

दोहे का अर्थ-
इस दोहे में कबीरदास जी ने यह कहा है कि व्यवहार में भी किसी साधु को गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए और गुरु के मुताबिक ही आना-जाना चाहिए अर्थात सद् गुरु के कहने का तात्पर्य यह है कि संत वही है जो जन्म- मरण से पार होने के लिए कठोर साधना करता है।

Sant Kabir Das Ke Dohe In Hindi With Meaning

गुरु सो ज्ञान जु लीजिये,
सीस दीजये दान।
बहुतक भोंदू बहि गये,
सखि जीव अभिमान।।

दोहे का अर्थ-
इस दोहे में कबीरदास जी ने यह बताया है कि अपने सिर को दान में देकर गुरु से ज्ञान प्राप्त करो, लेकिन यह सीख न मानकर कई लोग अपने शरीर, धन समेत कई चीजों के घमंड में चूर होकर इस संसार से चले गए, जिन्हें कभी ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई है अर्थात उनके गुरुपद- पोत में नहीं लगे।

Kabir Ke Dohe With Meaning In Hindi

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर,आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर !!

अर्थ- –
कविवर कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य की इच्छा, उसका ऐश्वर्य अर्थात धन सब कुछ नष्ट होता है यहां तक की शरीर भी नष्ट हो जाता है लेकिन फिर भी आशा और भोग की आस नहीं मरती।

Sant Kabir Ke Dohe In Hindi

साईं इतना दीजिए, जा में कुटम समाय, मै भी भूखा न रहूं, साधू न भूख जाय!!

अर्थ- –
कबीरदास जी कहते हैं कि प्रभु इतनी कृपा करना कि जिसमें मेरा परिवार सुख से रहे और ना मै भूखा रहूं और न ही कोई सदाचारी मनुष्य भी भूखा सोए।

Kabir Das In Hindi Dohe

कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये, ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये।

अर्थ-
कबीरदास जी कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे तब सब खुश थे और हम रो रहे थे। पर कुछ ऐसा काम ज़िन्दगी रहते करके जाओ कि जब हम मरें तो सब रोयें और हम हँसें।

Hindi Dohe With Meaning

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए। मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए।

अर्थ-
अगर मन का मैल ही नहीं गया तो ऐसे नहाने से क्या फ़ायदा? मछली हमेशा पानी में ही रहती है, पर फिर भी उसे कितना भी धोइए, उसकी बदबू नहीं जाती।

Hindi Doha

तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय। सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए।

अर्थ-
हम सभी हर रोज़ अपने शरीर को साफ़ करते हैं लेकिन मन को बहुत कम लोग साफ़ करते हैं। जो इंसान अपने मन को साफ़ करता है, वही हर मायने में सच्चा इंसान बन पाता है।

Dohe Of Kabir

सुख में सुमिरन सब करै दुख में करै न कोई, जो दुख में सुमिरन करै तो दुखा काहे होई!!

अर्थ-
इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि जब मनुष्य के जीवन में सुख आता है तो वह ईश्वर को याद नहीं करता लेकिन जैसे ही दुख आता है तब वो दौड़ा-दौड़ा ईश्वर के चरणों में आ जाता है फिर आप ही बताइए कि ऐसे भक्त की पीड़ा कौन सुनेगा?

Dohe Of Kabir Das

माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे। एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे।

अर्थ-
मिट्टी कुम्हार से कहती है कि आज तुम मुझे रौंद रहे हो, पर एक दिन ऐसा भी आयेगा जब तुम भी मिट्टी हो जाओगे और मैं तुम्हें रौंदूंगी!

Kabir Das Ke Dohe In Hindi With Meaning

कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर। जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर।

अर्थ-
जो इंसान दूसरों की पीड़ा को समझता है, वही सच्चा इंसान है। जो दूसरों के कष्ट को ही नहीं समझ पाता, ऐसा इंसान भला किस काम का!

Kabir Das Ji Ke Dohe

गुरु गोविंद दोनो खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय!!

अर्थ-
कबीर दास जी ने कहते हैं कि जब गुरु और खुद ईश्वर एक साथ हों तब किसका पहले अभिवादन करें अर्थात दोनों में से किसे पहला स्थान दें? इस पर कबीर दास जी कहते हैं कि जिसने ईश्वर से मिलाया है वही श्रेष्ठ है क्योंकि उसने ही तुम्हे ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता बताया है जिससे कि आज तुम ईश्वर के सामने खड़े हो।

Kabir Ke Dohe With Meaning In Hindi Wikipedia

“दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।”

अर्थ-
संत कबीरदासजी अपने दोहे में कहते हैं की मनुष्य का यह स्वभाव होता है कि वो दूसरे के दोष देखकर और ख़ुश होकर हंसता है। तब उसे अपने अंदर के दोष दिखाई नहीं देते। जिनकी न ही शुरुवात हैं न ही अंत।

Dohas Of Kabir In Hindi

“जाति न पूछो साधू की, पुच लीजिए ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।”

अर्थ-
सज्जन और ज्ञानी की जाति पूछने से अच्छा हैं की उसके ज्ञान को समझना चाहिए। जैसे तलवार की कीमत होती हैं, ना की उसे ढ़कने वाले खोल की।

Dohe In Hindi With Meaning

“माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।”

अर्थ-
कबीरदास जी कहते हैं जब कोई व्यक्ति काफ़ी समय तक शांति के लिए हाथ में मोती की माला लेकर ईश्वर की भक्ति करता हैं लेकिन फिर भी उसका मन नहीं बदलता है । संत कबीरदास ऐसे इन्सान को सलाह देते हैं कि हाथ में मोतियों की माला को फेरना छोड़कर मन के मोती को बदलो।

Kabir Ji Ke Dohe

“धीरे – धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।”

अर्थ-
जैसे कोई आम के पेड़ को रोज बहोत सारा पानी डाले और उसके नीचे आम आने की राह में बैठा रहे तो भी आम ऋतु में ही आयेंगे, वैसे ही धीरज रखने से सब काम हो जाते हैं।

Kabir Ke Dohe In Hindi

“तिनका कबहूँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय, कबहूँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।”

अर्थ-
अपने इस दोहे में संत कबीरदासजी कहते हैं की एक छोटे तिनके को छोटा समझ के उसकी निंदा न करो जैसे वो पैरों के नीचे आकर बुझ जाता हैं वैसे ही वो उड़कर आँख में चला जाये तो बहुत बड़ा घाव देता हैं।

Kabir Ke Dohe Sakhi Meaning In Hindi

“साधू ऐसा चाहिये, जैसा सूप सुभाय, सार – सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।”

अर्थ-
जैसे अनाज साफ करने वाला सूप होता हैं वैसे इस दुनिया में सज्जनों की जरुरत हैं जो सार्थक चीजों को बचा ले और निरर्थक को चीजों को निकाल दे।

Dohe Of Kabir Das In Hindi

“पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”

अर्थ-
संत कबीरदासजी कहते हैं की बड़ी बड़ी क़िताबे पढ़कर कितने लोग दुनिया से चले गये लेकिन सभी विद्वान नहीं बन सके। कबीरजी का यह मानना हैं की कोई भी व्यक्ति प्यार को अच्छी तरह समझ ले तो वही दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी होता हैं।

Sant Kabir Ke Dohe With Meaning In Hindi

“बुरा जो देखन मैं देखन चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।”

अर्थ-
जब मैं इस दुनिया में बुराई खोजने निकला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला। पर फिर जब मैंने अपने मन में झांक कर देखा तो पाया कि दुनिया में मुझसे बुरा और कोई नहीं हैं।

Sant Kabir Dohe In Hindi

“जिही जिवरी से जाग बँधा, तु जनी बँधे कबीर। जासी आटा लौन ज्यों, सों समान शरीर।”

अर्थ-
जिस भ्रम तथा मोह की रस्सी से जगत के जीव बंधे है। हे कल्याण इच्छुक! तू उसमें मत बंध। नमक के बिना जैसे आटा फीका हो जाता है। वैसे सोने के समान तुम्हारा उत्तम नर – शरीर भजन बिना व्यर्थ जा रहा हैं।

Dohe With Meaning

“जीवत कोय समुझै नहीं, मुवा न कह संदेश। तन – मन से परिचय नहीं, ताको क्या उपदेश।”

अर्थ-
शरीर रहते हुए तो कोई यथार्थ ज्ञान की बात समझता नहीं, और मार जाने पर इन्हे कौन उपदेश करने जायगा। जिसे अपने तन मन की की ही सुधि – बूधी नहीं हैं, उसको उपदेश देने से क्या फायदा?

Kabir Ki Suktiyan In Hindi

“बनिजारे के बैल ज्यों, भरमि फिर्यो चहुँदेश। खाँड़ लादी भुस खात है, बिन सतगुरु उपदेश।”

अर्थ-
सौदागरों के बैल जैसे पीठ पर शक्कर लाद कर भी भूसा खाते हुए चारों और फेरि करते है। इस प्रकार इस प्रकार यथार्थ सद्गुरु के उपदेश बिना ज्ञान कहते हुए भी विषय – प्रपंचो में उलझे हुए मनुष्य नष्ट होते है।

Kabir Ke Dohe Hindi Me

“मन राजा नायक भया, टाँडा लादा जाय।, पूँजी गयी बिलाय।”

अर्थ-
मन-राजा बड़ा भारी व्यापारी बना और विषयों का टांडा (बहुत सौदा) जाकर लाद लिया। भोगों-एश्वर्यों में लाभ है-लोग कह रहे हैं, परन्तु इसमें पड़कर मानवता की पूँजी भी विनष्ट हो जाती है।

Dohas Of Kabir Das

“बार-बार तोसों कहा, सुन रे मनुवा नीच। बनजारे का बैल ज्यों, पैडा माही मीच।”

अर्थ-
हे नीच मनुष्य ! सुन, मैं बारम्बार तेरे से कहता हूं। जैसे व्यापारी का बैल बीच मार्ग में ही मार जाता है। वैसे तू भी अचानक एक दिन मर जाएगा।

Kabir Ke Dohe In Hindi Pdf

“बन्दे तू कर बन्दगी, तो पावै दीदार। औसर मानुष जन्म का, बहुरि न बारम्बार।”

अर्थ-
हे दास! तू सद्गुरु की सेवा कर, तब स्वरूप-साक्षात्कार हो सकता है। इस मनुष्य जन्म का उत्तम अवसर फिर से बारम्बार न मिलेगा।

Kabir Das Poems In Hindi

“बहते को मत बहन दो, कर गहि एचहु ठौर। कह्यो सुन्यो मानै नहीं, शब्द कहो दुइ और।”

अर्थ-
बहते हुए को मत बहने दो, हाथ पकड़ कर उसको मानवता की भूमिका पर निकाल लो। यदि वह कहा-सुना न माने, तो भी निर्णय के दो वचन और सुना दो।

Sant Kabir Das Ke Dohe In Hindi

“गारी ही से उपजै, कलह कष्ट औ मीच। हारि चले सो सन्त है, लागि मरै सो नीच।”

अर्थ-
गाली से झगड़ा सन्ताप एवं मरने-मारने तक की बात आ जाती है। इससे अपनी हार मानकर जो विरक्त हो चलता है, वह सन्त है, और (गाली गलौच एवं झगड़े में) जो व्यक्ति मरता है, वह नीच है।

Kabir Ke Dohe Arth Sahit

“गारी मोटा ज्ञान, जो रंचक उर में जरै। कोटी सँवारे काम, बैरि उलटि पायन परे। कोटि सँवारे काम, बैरि उलटि पायन परै। गारी सो क्या हान, हिरदै जो यह ज्ञान धरै।”

अर्थ-
इस दोहे में महाकवि कबीर दास जी कहते हैं यदि अपने ह्रदय में थोड़ी भी सहन शक्ति हो, तो मिली हुई गाई भी भारी ज्ञान का सामान है। सहन करने से करोड़ों काम (संसार में) सुधर जाते हैं। और शत्रु आकर पैरों में पड़ता है। यदि ज्ञान ह्रदय में आ जाय, तो मिली हुई गाली से अपनी क्या हानि है?

Sant Kabir Das Ke Dohe

कबीरा ते नर अंध हैं, गुरू को कहते और, हरि रुठे गुरु ठौर है, गुरू रुठे नहीं ठौर!

अर्थ-
कबीरदास जी ने इस दोहे में जीवन में गुरू का महत्व बताया है। वे कहते हैं कि मनुष्य तो अंधा हैं सब कुछ गुरु ही बताता है अगर ईश्वर नाराज हो जाए तो गुरु एक डोर है जो ईश्वर से मिला देती है लेकिन अगर गुरु ही नाराज हो जाए तो कोई डोर नहीं होती जो सहारा दे।

Kabir Vani In Hindi

“इष्ट मिले अरु मन मिले, मिले सकल रस रीति। कहैं कबीर तहँ जाइये, यह सन्तन की प्रीति।”

अर्थ-
उपास्य, उपासना-पध्दति, सम्पूर्ण रीति-रिवाज और मन जहां पर मिले, वहीँ पर जाना सन्तों को प्रियकर होना चाहिए।

Kabir Das Ke Dohe Hindi Me

“कबीर तहाँ न जाइये, जहाँ सिध्द को गाँव। स्वामी कहै न बैठना, फिर-फिर पूछै नाँव।”

अर्थ-
अपने को सर्वोपरि मानने वाले अभिमानी सिध्दों के स्थान पर भी मत जाओ। क्योंकि स्वामीजी ठीक से बैठने तक की बात नहीं कहेंगे, बारम्बार नाम पूछते रहेंगे।

Kabir Das Poems In Hindi With Meaning

“जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय। जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय।”

अर्थ-
‘आहारशुध्दी:’ जैसे खाय अन्न, वैसे बने मन्न लोक प्रचलित कहावत है और मनुष्य जैसी संगत करके जैसे उपदेश पायेगा, वैसे ही स्वयं बात करेगा। अतएव आहाविहार एवं संगत ठीक रखो।

Doha Of Kabir

“कबीर तहाँ न जाइये, जहाँ जो कुल को हेत। साधुपनो जाने नहीं, नाम बाप को लेत।”

अर्थ-
गुरु कबीर साधुओं से कहते हैं कि वहाँ पर मत जाओ, जहाँ पर पूर्व के कुल-कुटुम्ब का सम्बन्ध हो। क्योंकि वे लोग आपकी साधुता के महत्व को नहीं जानेंगे, केवल शारीरिक पिता का नाम लेंगे ‘अमुक का लड़का आया है।

Easy Dohe In Hindi

“कहते को कही जान दे, गुरु की सीख तू लेय। साकट जन औश्वान को, फेरि जवाब न देय।”

अर्थ-
उल्टी-पल्टी बात बकने वाले को बकते जाने दो, तू गुरु की ही शिक्षा धारण कर। साकट (दुष्टों)तथा कुत्तों को उलट कर उत्तर न दो।

Kabir Bani In Hindi

“धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर। अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर।”

अर्थ-

कबीर दास जी कहते हैं कि धर्म (परोपकार, दान सेवा) करने से धन नहीं घटना, देखो नदी सदैव बहती रहती है, परन्तु उसका जल घटता नहीं। धर्म करके स्वयं देख लो।

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