दिल से बग़ावत
क्या कशिश थी उन की आँखों में? मत पूछो दोस्तों,
मुझसे मेरा ही दिल बग़ावत कर बैठा, “मुझको ये ही चाहिये।”
मैंने हजार बार कहा दिल से “अब भूल भी जाओ उनको,”
पर हर बार दिल ने मुझसे ये ही कहा “तुम दिल से नहीं कहते।”
आखिर क्यों न मिलती हमको मोहब्बत में सज़ा,
हमने भी तो बहुतों के दिल तोड़े थे एक शख़्स के खातिर।
दिल के रिश्ते
एहसास के दामन में आँसू गिरा कर देखो,
प्यार कितना है तुमसे ये आजमा कर देखो,
तुमसे दूर हो कर, क्या होगी दिल की हालत,
जानने के लिए, आईने पे पत्थर गिरा कर देखो।
दिल के रिश्तों का कोई नाम नहीं होता,
हर रास्ते का मुक़ाम नहीं होता,
अगर चाहत हो रिश्ता निभाने की दोनों तरफ,
तो संसार का कोई भी रिश्ता नाकाम नहीं होता।
दिल से
बैसे दिल से खेलना तो हमको भी आता है,
पर जिस खेल मे खिलौना टूट जाए,
वो खेल हमको आज भी पसंद नहीं।
चले हम इतना, तो कहा पांव के छालों ने,
बस्ती कितनी दूर बसा ली, दिल में बसने वालों ने।
दिल्लगी
ठान लिया था कि अब इश्क़ पर और नहीं लिखेंगे,
पर दिल पर उनकी दस्तक हुई और अल्फ़ाज़ बग़ावत कर बैठे।
हमारी दिल्लगी शायद उनके दिल पे भारी है,
वो चल दिए हंसकर पर यहाँ बरसात जारी है।
ये सच नहीं कि तुम सा हसीन इस जहान में नहीं,
पर इस कमबख्त दिल का क्या करूँ?
जिसे तुमसे हसीं कोई और नज़र ही नहीं आता।
दर्द ए दिल
अगर कर सकते लफ्ज़ों में बयान इस दर्द-ए-दिल को,
तो लाख तेरा दिल पत्थर का सही, पर कब का मोम कर दिया होता।
ये ज़रूरी तो नहीं जो ख़ुशी दे उसी से ही प्यार हो,
अक्सर सच्ची मोहब्बत तो दिल तोड़ने वालों से ही होती है।