Shreemad Bhagawad Geeta Quotes |
Lord Krishna Inspirational Quotes In Hindi From Shreemad Bhagawad Geeta
Contents
- 1 Lord Krishna Inspirational Quotes In Hindi From Shreemad Bhagawad Geeta
- 1.0.1 Geeta Saar In Hindi
- 1.0.2 Geeta Updesh In Hindi
- 1.0.3 Bhagwat Geeta In Hindi
- 1.0.4 Gita Updesh Quotes
- 1.0.5 Bhagavad Gita In Hindi
- 1.0.6 Geeta Ke Updesh In Hindi
- 1.0.7 Gita Ka Updesh In Hindi
- 1.0.8 Bhagwat Geeta Saar Hindi
- 1.0.9 Life Quotes In Hindi
- 1.0.10 Gita Updesh Hindi
- 1.0.11 Geeta Ke Updesh
- 1.0.12 Geeta Ka Saar Kya Hai
- 1.0.13 Bhagwat Gita Quotes In Hindi
- 1.0.14 Geeta Ka Saar In Hindi
- 1.0.15 Geeta Sandesh
- 1.0.16 Shreemad Bhagwat Geeta In Hindi
- 1.0.17 Geeta Path In Hindi
- 1.0.18 Geeta Ka Updesh Full In Hindi
- 1.0.19 Geeta Gyan In Hindi
- 1.0.20 Shri Krishna Updesh In Hindi
- 1.0.21 Bhagwad Geeta Quotes In Hindi
- 1.0.22 Krishna Updesh In Hindi
- 1.0.23 Geeta Updesh In Mahabharat In Hindi
काम, क्रोध और लोभ, ये जीव को नरक की ओर ले जाने वाले तीन द्वार हैं, इसलिए इन तीनों का त्याग करना चाहिए|
Geeta Saar In Hindi
मैं ही सबकी उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझसे ही जगत का होता है।
Shreemad Bhagawad Gita Updesh |
Geeta Updesh In Hindi
हे अर्जुन, तुम यह निश्चयपूर्वक सत्य मानो कि मेरे भक्त का कभी भी विनाश या पतन नहीं होता है।
Bhagwat Geeta In Hindi
यदि कोई बड़े से बड़ा दुराचारी भी अनन्य भक्ति भाव से मुझे भजता है, तो उसे भी साधु ही मानना चाहिए और वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है तथा परम शांति को प्राप्त होता है।
Shreemad Bhagawad Gita Saar |
Gita Updesh Quotes
सभी प्राणी मेरे लिए बराबर हैं, न मेरा कोई अप्रिय है और न प्रिय; परन्तु जो श्रद्धा और प्रेम से मेरी उपासना करते हैं, वे मेरे समीप रहते हैं और मैं भी उनके निकट रहता हूँ।
Bhagavad Gita In Hindi
हे अर्जुन, तुम सदा मेरा स्मरण करो और अपना कर्तव्य करो। इस तरह मुझ में अर्पण किये मन और बुद्धि से युक्त होकर निःसंदेह तुम मुझको ही प्राप्त होगे|
Shreemad Bhagawad Gita Quotes In Hindi |
Geeta Ke Updesh In Hindi
हे अर्जुन, जैसे प्रज्वलित अग्नि लकड़ी को जला देती है, वैसे ही ज्ञानरूपी अग्नि कर्म के सारे बंधनों को भस्म कर देती है।
Gita Ka Updesh In Hindi
अपने आप जो कुछ भी प्राप्त हो, उसमें संतुष्ट रहने वाला, ईर्ष्या से रहित, सफलता और असफलता में समभाव वाला कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी कर्म के बन्धनों से नहीं बंधता है।
Shree Krishna Ke Updesh Hindi Me |
Bhagwat Geeta Saar Hindi
जो आशा रहित है, जिसके मन और इन्द्रियां वश में हैं, जिसने सब प्रकार के स्वामित्व का परित्याग कर दिया है, ऐसा मनुष्य शरीर से कर्म करते हुए भी पाप को प्राप्त नहीं होता और कर्म बंधन से मुक्त हो जाता है।
Life Quotes In Hindi
हे अर्जुन, जो भक्त जिस किसी भी मनोकामना से मेरी पूजा करते हैं, मैं उनकी मनोकामना की पूर्ति करता हूँ।
Gita Updesh Hindi
हे अर्जुन, मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं, इसे जो मनुष्य भली भांति जान लेता है, उसका मरने के बाद पुनर्जन्म नहीं होता तथा वह मेरे लोक, परमधाम को प्राप्त होता है।
Geeta Ke Updesh
हे अर्जुन, जब जब संसार में धर्म हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब – तब अच्छे लोगों की रक्षा, दुष्टों का संहार और धर्म की स्थापना करने के लिए मैं हर युग में अवतरित होता हूँ|
Geeta Ka Saar Kya Hai
हे अर्जुन, मेरे और तुम्हारे बहुत सारे जन्म हो चुके हैं, मैं सबको जानता हूँ परन्तु तुम नहीं जानते|
Bhagwat Gita Quotes In Hindi
इन्द्रियां शरीर से श्रेष्ठ कही जाती हैं, इन्द्रियों से परे मन है और मन से परे बुद्धि है और आत्मा बुद्धि से भी अत्यंत श्रेष्ठ है।
Geeta Ka Saar In Hindi
इन्द्रियां, मन और बुद्धि काम के निवास स्थान कहे जाते हैं। यह काम इन्द्रियां, मन और बुद्धि को अपने वश में करके ज्ञान को ढककर मनुष्य को भटका देता है।
Geeta Sandesh
जो मनुष्य बिना आलोचना किये, श्रद्धापूर्वक मेरे उपदेश का सदा पालन करते हैं, वे कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।
Shreemad Bhagwat Geeta In Hindi
श्रेष्ठ मनुष्य जैसा आचरण करता है, दूसरे लोग भी वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो प्रमाण देता है, जनसमुदाय उसी का अनुसरण करते हैं।
Geeta Path In Hindi
मनुष्य कर्म को त्यागकर कर्म के बंधन से मुक्त नहीं होता। केवल कर्म के त्याग मात्र से ही सिद्धि प्राप्त नहीं होती। कोई भी मनुष्य एक क्षण भी बिना कर्म किये नहीं रह सकता।
Geeta Ka Updesh Full In Hindi
जो मनुष्य सब कामनाओं तो त्यागकर, इच्छा रहित, ममता रहित तथा अहंकार रहित होकर विचरण करता है, वही शांति प्राप्त करता है।
Geeta Gyan In Hindi
जैसे जल में तैरती नाव को तूफान उसे अपने लक्ष्य से दूर ले जाता है, वैसे ही इन्द्रिय सुख मनुष्य को गलत रास्ते की ओर ले जाता है।
Shri Krishna Updesh In Hindi
जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान को अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनंद अनुभव करेगा।
Bhagwad Geeta Quotes In Hindi
शांति से सभी दुःखों का अंत हो जाता है और शांतचित्त मनुष्य की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर होकर परमात्मा से युक्त हो जाती है।
Krishna Updesh In Hindi
क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
Geeta Updesh In Mahabharat In Hindi
क्रोध से सम्मोहन और अविवेक उत्पन्न होता है, सम्मोहन से मन भृष्ट हो जाता है। मन नष्ट होने पर बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि का नाश होने से मनुष्य का पतन होता है।
विषयों का चिंतन करने से विषयों की आसक्ति होती है। आसक्ति से इच्छा उत्पन्न होती है और इच्छा से क्रोध होता है।
हे कुंतीनंदन! संयम का प्रयत्न करते हुए ज्ञानी मनुष्य के मन को भी चंचल इन्द्रियां बलपूर्वक हर लेती हैं। जिसकी इन्द्रियां वश में होती हैं, उसकी बुद्धि स्थिर होती है।
दुःख से जिसका मन परेशान नहीं होता, सुख की जिसको आकांक्षा नहीं होती तथा जिसके मन में राग, भय और क्रोध नष्ट हो गए हैं, ऐसा मुनि आत्मज्ञानी कहलाता है।
जब तुम्हारी बुद्धि मोहरूपी दलदल को पार कर जाएगी, उस समय तुम शास्त्र से सुने गए और सुनने योग्य वस्तुओं से भी वैराग्य प्राप्त करोगे।
केवल कर्म करना ही मनुष्य के वश में है, कर्मफल नहीं। इसलिए तुम कर्मफल की आशक्ति में ना फंसो तथा अपने कर्म का त्याग भी ना करो
तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आये, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
जिन्हें वेद के मधुर संगीतमयी वाणी से प्रेम है, उनके लिए वेदों का भोग ही सब कुछ है।
खाली हाथ आये और खाली हाथ वापस चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
सुख – दुःख, लाभ – हानि और जीत – हार की चिंता ना करके मनुष्य को अपनी शक्ति के अनुसार कर्तव्य -कर्म करना चाहिए। ऐसे भाव से कर्म करने पर मनुष्य को पाप नहीं लगता
युद्ध में मरकर तुम स्वर्ग जाओगे या विजयी होकर पृथ्वी का राज्य भोगोगे; इसलिए हे कौन्तेय, तुम युद्ध के लिए निश्चय करके खड़े हो जाओ
जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।
सम्मानित व्यक्ति के लिए अपमान मृत्यु से भी बढ़कर है।
हे अर्जुन! सभी प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मृत्यु के बाद फिर अप्रकट हो जायेंगे। केवल जन्म और मृत्यु के बीच प्रकट दिखते हैं, फिर इसमें शोक करने की क्या बात है?
परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है और मरने वाले का जन्म निश्चित है। अतः जो अटल है उसके लिए तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए
शस्त्र इस आत्मा को काट नहीं सकते, अग्नि इसको जला नहीं सकती, जल इसको गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती।
जैसे मनुष्य अपने पुराने वस्त्रों को उतारकर दूसरे नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही जीव मृत्यु के बाद अपने पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर प्राप्त करता है।
तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त रहता है।
आत्मा ना कभी जन्म लेती है और ना मरती ही है। शरीर का नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।
आत्मा अजर अमर है। जो लोग इस आत्मा को मारने वाला या मरने वाला मानते हैं, वे दोनों ही नासमझ हैं आत्मा ना किसी को मारता है और ना ही किसी के द्वारा मारा जा सकता है।
न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से मिलकर बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है – फिर तुम क्या हो?
जैसे इसी जन्म में जीवात्मा बाल, युवा और वृद्ध शरीर को प्राप्त करती है। वैसे ही जीवात्मा मरने के बाद भी नया शरीर प्राप्त करती है। इसलिए वीर पुरुष को मृत्यु से घबराना नहीं चाहिए।
हे अर्जुन, तुम ज्ञानियों की तरह बात करते हो, लेकिन जिनके लिए शोक नहीं करना चाहिए, उनके लिए शोक करते हो। मृत या जीवित, ज्ञानी किसी के लिए शोक नहीं करते।
हे अर्जुन विषम परिस्थितियों में कायरता को प्राप्त करना, श्रेष्ठ मनुष्यों के आचरण के विपरीत है। ना तो ये स्वर्ग प्राप्ति का साधन है और ना ही इससे कीर्ति प्राप्त होगी।
यह बड़े ही शोक की बात है कि हम लोग बड़ा भारी पाप करने का निश्चय कर बैठते हैं तथा राज्य और सुख के लोभ से अपने स्वजनों का नाश करने को तैयार हैं।
कर्म ही पूजा है।